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Sunday, August 29, 2010

किस ओर जा रहे |

किस ओर जा रहे

मै अपने सोच में निमग्न था सोचते -सोचते मै झुंजला सा गया सोच यह रहा था कि आज हमारे समाज का मानव और उसकी संस्कृति किस दिशा में आगे आगे बढ़ रही है , इस सोचने के ढंग से ही मनुष्य अलग - अलग होता है , नहीं तो प्रतेक मनुष्य का शरीर एक ही हाढ़ मांस का बना है शरीर का प्रमुख अंग मस्तिस्क ही है ,व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही करता है मस्तिस्क जो देखता है वैसा ही हमें करने का आदेश देता है ठीक इसी तरह एक वालक जब अपने घर के सदशय से सीखता है ,और तदरूप अचरण बढ़ा हो कर अपने साथी ,पढ़ोसी एवं अपने समाज से करता है , तब उसके परिवार एवं समाज उसको भला -बुरा कहती है इसी तरह के वय्कित्ब के लोग तब उच्य पदासीन हो जाते है , तो उनके द्वारा किया जाने वाला कार्य भी कुलसित्य हो ता है और ऐयसे कार्य से समाज ,वयवस्था ,चरमरा ती जा रही है

1 comment:

Patali-The-Village said...

इस लिए हमे बच्चों को अच्छी आदतें सिखानी चाहिए|