राष्ट्र भाषा एवं संस्कृति की पहचान ।
आदरनीय वेद प्रताप वैदिक जी सर्व प्रथम आपको करवद्ध प्रणाम- ‘बात सिर्फ शराब की नही‘ शिर्षक से संपदकीय दिनंक-20 अक्तूबर 2010 पोस्ट समय- 12.30 को प्रकाशित आपका लेख पढ़ा अच्छा लगा। यह बात आम व्यक्ति के लिए शिक्षाप्रद है। लेकिन हमे जिन लोगो तक यह बात पहुँचाना चाहिए शायद वहाँ तक न पहुँचे या उनके कानो में जूँ तक नही रेंगे। बात सिर्फ पैंन्ट-शर्ट,अंग्रेजी शराब तक ही होता, आपको य़ह बताना निर्थक होगा कि जब हमारे देश का संविधान ही अंग्रेजी मे लिखा गया है,तो हमारे शासक वर्ग अंग्रजी भाषा को अपने सर-आँखों पर क्यों नही बैठाते ? अंग्रजी शासन काल मे भारत के लोगों को एक नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक था। इसलिए उस समय हमारे याँहा के लोगो ने अंग्रजी भाषा को सीखा। इस भाषा को सीखने की दूसरी वजह यह भी था, कि किसी सत्ता पर चोट करने या किसी भी देश के आदमी को अच्छी तरह समझने के लिए वहाँ की बोली और भाषा का ज्ञान होना बहुत जरुरी है। देश को आजदी मिलने के बाद वही लोगों ने देश का शासन संभाला और सभी काम-काज अंग्रजी मे ही किया। और अपने घर के बच्चो पर अंग्रजी लिखने-पढ़ने के लिए जोर देते रहे। इस प्रकार फिर से देश की जनता पर अंग्रेजी थोप दी गई। किसी भाषा को जानना कोई गलत बात नही है परन्तु कहना यह है कि जब हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी घोषित हुई,उस समय हमारे निती निर्माताओ ने इंजीनियरिंग, डाँक्टरी, प्रतियोगिताओ एवं अन्य अंग्रेजी मे लिखी हुई किताबो को हिन्दी मे क्यो नही बदल दिया ? इसके पिछे भी कारण रहे होंगे लेकिन यदि ऐसा हुआ होता तो आज हम हिन्दी पढ़ने लिखने और काम करने के लिए वाध्य होते, साथ ही साथ समाज के गरीब,मध्यम और अमीर वर्गो के बीच की खाई को कुछ हद तक पाटने मे कायाब हुए होते। अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी संस्कार हमारे संस्कृती मे गहराई तक अपना पैठ बना चूका है जब तक अंग्रेजी भाषा का प्रचलन बंन्द नही किया जायेगा तब तक सही अर्थो मे हिन्दी भाषा एवं संस्कृति अपनी राष्ट्रीय पहचान नही बना पायेगी।
1 comment:
आपसे सहमत. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
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