राष्ट्रमंडल खेलो के साथ–साथ राष्ट्र के धन के साथ भी खेल हुआ जिन लोंगो के हाथ मे आयोजन तथा निमा था सब ने जम कर खेल-खेला अंन्तर केवल इतना रहा कि खिलाड़ीयों ने देश का नाम रौशन करने के लिए खेल खेला तो आयोजको ने अपने झोली भरने के लिए । दोनो ही खेलों मे मुद्रा प्रधान रही । जितने स्वर्ण पदक देश के झोली मे आये उससे कही अधिक स्वर्ण मूल्य भ्रष्टाचारियों के जेब मे गये। इन भ्रष्टाचारियों के लिए देश पहले न होकर मुद्रा पहले है, इस तरह का भष्टाचार न केवल आर्थीक अपराध है वलकि राष्ट्रद्रोह भी है, और इस तरह के अपराधियों को तो कठोर दंड मिलना ही चाहिए । बिडम्बना यह है कि हमारे देश मे प्रत्येक ऐसे अपराध जिसमे नौकरशाह या राज नेता शामिल होता है को एक जाँच समिति के हवाले कर, अपराधियो को समिति के रिपोर्ट के भरोसे मौज करने के लिए छोड़ दिया जाता है, और फिर समीति दर समीति ऐसा सिलसिला शुरु होता है रिपोर्ट आले मे सालो गुजर जाते हैं और तब तक ये अपराधि इस काले धन को स्विसबैंक मे जमा हो चुका होता है या वेनामी संपत्ती खरीद कर खपाया जा चुका होता है । इस तरह चुनिंदा हाथो मे आये इस काले धन से न सिर्फ आने वाले वर्षो मे मुद्रास्फिती की दर में वृध्दि होगी बलकि बाजार मूल्य मे चड़ेगे और सभी लोगों का ध्यान इस मुद्दे से हट जायेगा और कुछ समय बाद यह मुद्दा भी अन्य मुद्दों की तरह अंन्धे कुऐं मे दफन कर दिया जायेगा । और फिर एक नये घोटाला का जिन्न ............ ।
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Wednesday, October 20, 2010
अंन्नत घोटाले ।
दिनांक -21/10/2010
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