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Tuesday, November 9, 2010

फिर से समाज

फिर से समाज
दिनांक- 8/11/2010
वेश्यालय, मदिरालय एवं संपत्ति इन तिनो से मनुष्य का बड़ा गहरा संम्बंध युगो-युगो से रहा है। स्वर्ग, नर्क पाप-पुण्य एवं चारो युगो का हमारे जन मानुष के दिमाग पर आज भी अपने काल की तरह अंकित है। यह मान्यता उतनी ही पुरानी है जितनी की मानव सभ्यता। अपने प्रारम्भिक काल से ही मनुष्य की यह पृवत्ती रही है कि उसे अपने द्वरा किये गये अच्छे-बुरे कामो का परिणाम भोगने कि चिंता सताती रही है। इसलिए मनुष्य द्वरा किये जाने वाले कमो को करने से पहले उसे एक पल रुकना पड़ता था। परन्तु समय के साथ-साथ यह सब मान्यताएँ और मनुष्य के सोच मे बदलाव आ गया, और यह सब मान्यताएँ समाप्त होती चली गयी। पूर्व काल के बने हुए नियमों एवं बैचारिक सोच एक वैझानिक सिद्धांत पर आधारित था। जैसे कि कहा जाता है कि खाना खते समय बात नही करना चाहिए, यह प्रश्न है। उत्तर- क्योकि जब हम खाना खाते समय बात करने लगते हैं,तो हमारा खाने से ध्यान हट जाता है,और हमारा खाना खाद्य नली मे न जा कर स्वाश नली मे चला जाता है। तब स्वाश न ले पाने के कारण दम घुटने लगता है, और ज्यादा समय हो जाने पर मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है। इसी प्रकार हमारे व्यवहारिक जिवन से जुड़े अनेको प्रश्न और उसके उत्तर हैं। हमारे प्राणाचार्यो द्वारा रचित सभी ग्रंथो मे पृथ्वी के काल को चार भागो मे वाँटा गया है, प्रथ काल- सत्य युग, द्वितीय काल –त्रेता युग, त्रितीय काल – द्वापर युग, चतुर्थ काल- कली युग। इन प्रत्येक काल का एक निश्चित समय था। इस कली युग मे वह सब परिदृश्य हमारे सामने होंगे जो बाकी के कालो मे कभी घटित नही हुआ। पूर्व काल का मनुष्य इतने दुरदृशी थे, कि कली युग मे घटित होने वाले घटनाओँ का जिक्र उन्होने धर्म ग्रंथो मे किया है। वही सब आज घटित हो भी रहे हैं। द्वपर के समाप्ती काल मे राजा परिक्षित का शासन था। उस समय तक पुण्यआत्माओं ऋषियों-मुनियों का निवास था। कलियुग आगमन के डर से सभी प्रणी व्याकुल हो भगवान के शरण मे जाने लगे। चारो ओर हाहाकार मचा हुआ था। तब राजा परीक्षित ने कली युग को तिन स्थानो पर रहने की छुट प्रदान किया। पहला स्थान- वेश्यालय। दूसरा स्थान-मदिरालय तीसरा स्थान- स्वर्ण (भ्रष्टाचार से कमाया धन) मे विराजमान रहने का आदेश दिया। यही से कली युग का प्रारंभ हुआ। आज यदि कली को और उसके प्रभाव को देखना और अनुभव करना है तो ये तिनो आपको वेश्यालय,मदिरालय,व्याभिचारियों और भ्रष्टाचारियों के घर पर पा सकते हैं। इतना ही नही भ्रष्टाचारियों के घर तमाम व्यभिचारो मे लिप्त हैं। आखिर कार इस सब का प्रभाव तो पड़ोस मे रहने वालो के घरो से लेकर पुरे समाज पर पड़ना तय है। लेकिन सोचने का विषय यह है कि जब हमारे समाज का प्रत्येक घर ऐसा ही हो जायेगा,उस समय इस समाज का मनुष्य अपने मानविक रिश्तो को कैसे निभा पायेगा। क्या यह मनुष्य समाज फिर से आदिकाल मे प्रवेश कर जायेगा। यह तो प्रकृति का नियम है, समय अपने आप को दोहराता है।

1 comment:

संजय कुमार चौरसिया said...

samay apne aap ko dohraata hai

http://sanjaykuamr.blogspot.com/