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Tuesday, January 4, 2011

ऐसे कब तक चलता रहोगा?


ऐसे कब तक चलता रहोगा?
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दिनांक – 2-01-2011
आज दिनांक- 2 जनवरी, 2011 का हिन्दुस्तान के पेज नं 12 मंथन मे छपा मृदुला गर्ग जी का लेख तिरस्कार और विरक्ति न हो तब अचरज है पढ़ा आपने बिलकुल सच लिखा है। हमारे समाज के लोगों से और समाज के ठेकेदारों से मुझे यह कहना है कि यह कहाँ तक जायज है कि एक बेगुनाह आदमी को उठा कर जेल में डाल दें और गुनेहगार स्वछन्द खुले आम घूमता रहे। आखिरकार इस तरह की प्रशासन की मानसिकता और मनमानी कब तक चलती रहेगी? एक बार इस पूरे प्रशासन तंत्र को स्वच्छ करने की जरुरत है, जिससे प्रशासन और न्याय की स्वच्छता एवं पार्दर्शिता फिर से समाज में स्थापित हो सके। आज हमारे समाज का इन्सान खुद ही इन्सान और इंन्सानित का दुशमन बन बैठा है। प्रशासन का व्यक्ति भी इसमें सहयोगी बन कर हैवानियत को चार चाँद लगा रही है। कहाँ खो गया इंन्सान और इंन्सान की इंन्सानियत यह किसी को पता नहीं है। लेकिन एक बात जरुर मैं जानता हूँ कि एक आदमी की पद, शक्ति, अधिकार और धन ज्यादा दिनों तक न रही है और न रह पायेगी। हमारे समाज की यह बहुत बड़ी विडम्बना है कि कुकर्मी व्यक्ति जरा उस समय का या उस परिस्थिति का अनुभव या स्मरण  नहीं करता या नहीं कर पाता है, नहीं तो शायद आज वह व्यक्ति प्रशासन को अपने हाथ में लेकर ऐसे काम करने की हिमाकत नहीं कर पाता। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारा प्रशासन और अधिकारी कितने चुस्त दुरुस्त है। इसका फायदा समाज के भ्रष्टाचारी और कुकृत करने वाले लोग उठा रहे हैं और जनता अवाक निसहाय हो ऐसे कृतों को देखती रह जाती है। और कर भी क्या सकते हैं हमारे समाज के लोगों को हमारे संस्कार, न्याय, कानून का भय और दुसरो की परवाह करने की चरित्र उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है लेकिन जिसभी दिन यह अवरोघों को तोड़ कर जनता आगे आयेगी, उस दिन इस जन सैलाव को रोक पाना किसी के भी वश में नहीं रहेगा। ऐसे कुकर्मी लोग इस बात को नहीं सोचते या नहीं सोच पाते हैं। लेकिन यह अवश्य है कि जब कभी भी वह दिन आयेगा ऐसे व्यक्ति अपने आप को बचा लेने की प्रार्थना दूसरों से करेंगे उस समय उन्हें बचाने वाला कोई भी नहीं होगा। दरअसल आज वह व्यक्ति अपने पद, प्रतिष्ठा और धन मद में चूर है, इसलिए यह बात उसके दिमाग में नहीं आ रही है । आज हमारे समाज की प्रत्येक उंगलियाँ भ्रष्टाचारियों, कुकर्मि‍यों एवं समाज के ठेकेदारों की ओर उठ चुकी है और यह प्रश्न कर रही है कि ऐसा कब तक चलता रहोगा? आज यह ज्वलंन्त प्रश्न समाज के सामने प्रश्न चिंन्ह लगाये खड़ा है।
 G.K. Chakravorty.

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