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Wednesday, April 12, 2017

एक अंश
और आगे एक अंश
हम मनुष्यों के मन मे समय—समय पर अनेको प्रकारी के प्रश्न उठते रहते ही हैं ऐसे ही प्रश्नों स्वाभाविक सी बात है कि मानव कहाँ से और कैसे उत्पन्न हुआ एवं वह अपने मावन जाती को विकसित करने में सफल हुआ। इस विषय में अनेको मत हैं जैसा कि पूर्व जगत मनु को मनुष्यों का पूर्वज माना है, पाश्चात्य विज्ञान बंदर की विकसित अवस्था मनुष्य को माना है।
मनुष्यों की उत्पत्ति के विषय में इ्रस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन ओरिजिन ने काफी गहन अन्वेषण —अनुसंधान किये हैं। इस संस्था के वैज्ञानीक कार्ल स्बीशर एवं गर्निश कर्टीजन ने इंडोनेशिया से प्राप्त होमोइरेक्टस का बहूत शुक्ष्मता से अध्ययन किया है। उनके अनुसार मनुष्य अफ्रीका के जंगलों में आदिमानव श्च्छिन्द रुप से विचरण किया करता था। उस समय अफ्रीका की जलवायु मनुष्यों के लिए उपयुक्त माना गया था।
डॉ ऐन्सन एवं अन्य कई विद्वानों ने भौगोलिक स्थिति का अध्ययन कर यह पता लगाया था कि पूर्वकाल में अफ्रीका अमेरिका एवं यूरोप की ऐसी स्थिति नहीं थी कि वहाँ मानव की उत्पत्ति हो ाके। उॉक्टर ऐन्सन ने मनुष्य की उत्पत्ति को लेकर परोक्ष रुप से हिमालय की ओर इंगित किया है। टेलर की मान्यता है कि वह स्थान स्वर्ग तुल्य कश्मीर ही है। ईरान की पारसी जाती के लांग अपना मूल निवास हिमालय को ही मानते हैं। पारसियों, हिन्दुओ, यहूदियों एवं क्रिश्चियनों के धर्म ग्रंथो के अनुसार यदि इस सृष्टि की उत्पत्ति ऐसे स्थान पर हुई जहाँ दस महिने सर्दी एवं दो महीने गर्मी पड़ती है तो निश्चित रुप से वह स्थान मानसरोवर से कश्मीर तक का क्षेत्र ही होना चाहिए इब्ने अली का हातिम ने भी यह स्वीकारा है कि हिंद की घाटी में ही आदम बहिश्त से उतरा था। इतिहासवेत्ता ए०एल० बाशम ने अपनी प्रसिद्ध कृति ट्टदबंडरदैट बाज ईडिया में स्पष्ट रुप से लिखा है कि ट्टईसा से करीब एक लाख से अधिक वर्ष पहले मानव ने पहली बार , अपने जीवन के प्रथम चिन्ह भारत में छोड़े । महाभारत मे लिखा इस श्लोक में भी मानव जाती की उत्पत्ति भारत मे ही बतायी गयह है।’’
अथ गच्छेत राजेन्द्र लोकविश्रुताम।
प्रसूतिर्यत्त विप्राणांश्रूयते भ्रतर्षम।।
इसका अर्थ सप्तरुचि तीर्थ के पास बितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मानव जाति को उत्पत्ति हुई। इस तरह लगभग सभी प्रणाम यह सिद्ध करते हैं कि आदिमानव की विकास—यात्रा बहुत धीमी गति से हुई वन मानुष की अवस्था में पूर्व मानव 6 करोड़ वर्षो का दीर्ध काल व्यतित किया होगा इन 6 करोड़ वर्षो के समय काल को हम पांच युगों में बांट सकते हैं।
1—पूर्व जीवन काल— 1 करोड़ 80 लाख वर्ष
2—आदि जीवन काल — 1 करोड़ 20 लाख वर्ष
3— अल्प जीवन काल— 1 करोड़ 80 लाख वर्ष 
4— मध्य जीवन काल— 1 करोड़ 60 लाख वर्ष
5— अति नूतन काल— 1 करोड़ 10 लाख वर्ष        
अतिनूतन काल के अंतिम समय में ही मानव जाती की विकास यात्रा प्रारंभ हुई होगी ट्टट्टक्लेरी अलेक्सेवेव ने अपने अध्ययन में ट्टमानव जाती की उत्पत्ति मे इस निर्धारण कुछ इस तरह से किया है।
1— आदिम प्राग् यूथ जिसे पूर्व पाषाणकाल की आरंभिक अवस्थाएं माना जाता है। इसके चालीस से बीस लाख वर्ष पहले आस्ट्रेलोषिथिसिस का आगमन माना जाता है।
2— आरंभिक आदिम यूथ पूर्व पाषाणकाल की उत्तरवर्ती अवस्था है। इसमें विथिकैंथ्रोपस ने जन्म लिया।
3— मध्य पुरापाषाण काल को आदिम यूथ का विकसित युग कहते हैं, इसमें नियंडरथल मानव का विकास हुआ।
4— आदिम समुदाय का उत्तर पाषाण काल, मध्य पाषाण काल, नवपाषाण काल और आरंभिक कांस्य युग में आधुनिक मानव का विकास हुआ।
आदि मानव ने पृथ्वी के इस भूखंड पर जन्म लेकर अपनी असहाय स्थिति का अनुमान किया। प्रकृति की महान शक्तियों के सम्मुख उसकी नगण्य चेतना जाग्रत हुई और उसने अपने उदर की क्षुधा को शांत करने के लिए, शरीर को शांत और ताप, वर्षा से सुरक्षित रखने के लिए एवं भयंकर पशुओं से अपनी सुरक्षा करने के लिए इस तरह के प्रत्यन किये।

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